वो पथ क्या पथिक कुशलता क्या ,
जिस पथ में बिखरे शूल ना हों,
नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
जब धाराएं प्रतिकूल ना हों।।
जी हाँ मित्रों उपरोक्त पंक्तियाँ यह बयाँ करती हैं कि उस राह में चलने का आनंद ही क्या जिस राह में चलते समय परेशानियां ना आएं।
ऐसी कुछ विषम परिस्तिथियों में मैंने भी 20 वर्ष की उम्र में एक सपना देखा और सोचा कि स्वयं के लिए तो हर कोई करता है क्यों ना हमारे समाज हमारे क्षेत्र के लिए कुछ अच्छा किया जाए और एक सपना देखने के साथ शुरुवात की एक छोटी सी कोशिश के साथ और 2013 में पहली बार "मेरा सपना मेरी कोशिश" सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था बनाई और मंच दिया उन कलाकारों को जिनके अंदर हुनर होता है कुछ नया करने का परंतु अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए मंच नहीं मिलता,या संसाधनों की कमियां आड़े आती हैं और वह निराश होकर फिर अपनी कलाकारी के रास्ते को छोड़ देता है परन्तु हमारे इस मंच देने के बाद बहुत से हुनरमंदों ने अपनी कला का लोहा मनवाया और बहुत बड़े बड़े मंचों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया चूंकि मैं स्वयं एक ग्रामीण क्षेत्र से हूँ मैने इन कमियों को समझा और जाना कि क्यों हम अपनी पसंद के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते और इस कार्य में शुरुवात में बहुत परेशानियों का सामना भी करना पड़ा परन्तु शुरुवात से ही संस्थापक सदस्य संस्था सचिव तारा सिंह बिष्ट और संस्था कोषाध्यक्ष धीरज सिंह खाती ने दिन रात सहयोग किया और फिर अन्य और साथी फिर संस्था से जुड़े और आज 50 सदस्यों का हमारा संस्था परिवार सभी लोगों के सहयोग से लोगों के साथ जुड़कर सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में कई कार्य करते आ रहे हैं जैसे- गरीब,असहाय,दिव्यांग बच्चों को शिक्षा में मदद,समय समय पर रक्त दान शिविर,बच्चों को मंच देने हेतु नृत्य गायन प्रतियोगिता,भाषण प्रतियोगिता,कविता प्रतियोगिता,वृक्षा रोपण कार्यक्रम,नशा मुक्ति अभियान,संसाधनों की कमियों के बावजूद समाज के लिए उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित और अन्य सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्य निरन्तर 7 वर्षो